Sunday, February 15, 2009

मंजिल और पड़ाव

मंजिल को पाने की चाह में
चलता रहा हु हरदम
बिना रुके बिना लिए दम
पर मंजिल है की मिलती नही .......
सोचता हु अब, जब
थक गया हु चलते चलते
क्यों भूल गया था
रास्ते के पदावो को
जो छोटी ही सही पर खुशिया तो देते है
कितने ही पड़ाव छुट गए
मंजिल रूपी बड़ी खुशी को पाने के लिए
काश पहले ही समझ पता मंजिल तो मेरी मंजिल नही थी
रास्ते का हर पड़ाव कर रहा था मेरा इंतज़ार
लुटाने के लिए हजारो खुशिया
जिन्हें me मे पाकर भी ना पा सका
मेरा मन जाने क्यो भागता रहा
झूटी मंजिल की तलाश me
apno को छोड़कर तनहा अकेला.........
जबकि रास्ते me थे कई हाथ
हमसफ़र बन्ने को तैयार ..........
छुट गए कितने
अपने इस मृगतृष्णा की तलाश me ................................

प्यार का दिन

प्रेम का इज़हार
क्यों बेबस है किसी दिन के लिये
यह तो मोजूद रहता है हर पल के लिये
जब इज़हार करना मुश्किल होता है
तो यह समझ लेना चाहिए
की यह नही बना है आप के लिये
प्रेम तो अपना एहसास ख़ुद ही करा देता है
यह करता नही इन्तेजार
इज़हार,इकरार ,पल या किसी दिन के लिये
स्वयं दिला देता है एहसास अपने होने का