Sunday, February 15, 2009

मंजिल और पड़ाव

मंजिल को पाने की चाह में
चलता रहा हु हरदम
बिना रुके बिना लिए दम
पर मंजिल है की मिलती नही .......
सोचता हु अब, जब
थक गया हु चलते चलते
क्यों भूल गया था
रास्ते के पदावो को
जो छोटी ही सही पर खुशिया तो देते है
कितने ही पड़ाव छुट गए
मंजिल रूपी बड़ी खुशी को पाने के लिए
काश पहले ही समझ पता मंजिल तो मेरी मंजिल नही थी
रास्ते का हर पड़ाव कर रहा था मेरा इंतज़ार
लुटाने के लिए हजारो खुशिया
जिन्हें me मे पाकर भी ना पा सका
मेरा मन जाने क्यो भागता रहा
झूटी मंजिल की तलाश me
apno को छोड़कर तनहा अकेला.........
जबकि रास्ते me थे कई हाथ
हमसफ़र बन्ने को तैयार ..........
छुट गए कितने
अपने इस मृगतृष्णा की तलाश me ................................

प्यार का दिन

प्रेम का इज़हार
क्यों बेबस है किसी दिन के लिये
यह तो मोजूद रहता है हर पल के लिये
जब इज़हार करना मुश्किल होता है
तो यह समझ लेना चाहिए
की यह नही बना है आप के लिये
प्रेम तो अपना एहसास ख़ुद ही करा देता है
यह करता नही इन्तेजार
इज़हार,इकरार ,पल या किसी दिन के लिये
स्वयं दिला देता है एहसास अपने होने का

Thursday, December 25, 2008

अपने विचारो को कविता कह नही सकता
क्योंकि यह तो एक प्रवाह है जो बहता है एक झरने की तरह
अपनी राह ख़ुद बनाता हुवा
कोई सीमा नही कोई बंधन नही
बस बहना ही जिसका धर्म है
मेरे विचार ही मेरी भावनाए है
जो देखता हु महसूस करता हु
लिख देता हु
पदकर लगता है
ये मेरे वक़्तितव का आइना ही तो है
जो खोलकर रख देता है
मुझको मेरे ही सामने...........................

Friday, December 19, 2008

रिश्ते

क्यो जरूरी होता है ,
रिश्तों को कोई नाम देना
बेनाम रिश्तों की भी अहमियत होती है
क्योंकि अक्सर खूबसूरती लिए हुवे
सम्पूर्णता मे डुबे रिश्ते बेनाम ही होते है
मेरी पहली कविता जो मुझे रिश्तों को नाम से नही दिल से होने का अहसास कराती है