अपने विचारो को कविता कह नही सकता
क्योंकि यह तो एक प्रवाह है जो बहता है एक झरने की तरह
अपनी राह ख़ुद बनाता हुवा
कोई सीमा नही कोई बंधन नही
बस बहना ही जिसका धर्म है
मेरे विचार ही मेरी भावनाए है
जो देखता हु महसूस करता हु
लिख देता हु
पदकर लगता है
ये मेरे वक़्तितव का आइना ही तो है
जो खोलकर रख देता है
मुझको मेरे ही सामने...........................
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