मंजिल को पाने की चाह में
चलता रहा हु हरदम
बिना रुके बिना लिए दम
पर मंजिल है की मिलती नही .......
सोचता हु अब, जब
थक गया हु चलते चलते
क्यों भूल गया था
रास्ते के पदावो को
जो छोटी ही सही पर खुशिया तो देते है
कितने ही पड़ाव छुट गए
मंजिल रूपी बड़ी खुशी को पाने के लिए
काश पहले ही समझ पता मंजिल तो मेरी मंजिल नही थी
रास्ते का हर पड़ाव कर रहा था मेरा इंतज़ार
लुटाने के लिए हजारो खुशिया
जिन्हें me मे पाकर भी ना पा सका
मेरा मन जाने क्यो भागता रहा
झूटी मंजिल की तलाश me
apno को छोड़कर तनहा अकेला.........
जबकि रास्ते me थे कई हाथ
हमसफ़र बन्ने को तैयार ..........
छुट गए कितने
अपने इस मृगतृष्णा की तलाश me ................................
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hum logon me se jyadatar yahi galti karte hain choti khushiyon ko chod kisi badi khushi ka intajaar karte rahte hain , saral aur achha lekhan
ReplyDeletebahut khoob!
ReplyDeletesundar abhivyakti ...........
ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है .आपके अनवरत लेखन के लिए मेरी शुभ कामनाएं ...
narayan narayan
ReplyDeleteकही तो ठहराव होगा ..कही तो हर इच्छा का
ReplyDeleteअंत होगा ......और वही मंजिल है ...दोस्त
बहुत अच्छा लिखा है आपने...दिल छु लिया
bahut khub likha thanks dil ko chu liya
ReplyDeleteaisa likhna bahut acha lagta